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मुसलमानों को असंगठित होकर और वोटबैंक बनकर जीने की आदत पड़ गई है । पढ़ें, युवा विश्लेषक नकी हैदर का आलेख

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प्रभाव इंडिया विशेष

वक्त,हालात और मुसलमान इस मौजूदा वक्त में दुनिया की कहानी छोडिए हमे अपने वतन की सियासत को देखना होगा और समझना होगा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हो चुके है जिसमें एक इस तरह की सियासी जमात आज सत्ता पर काबिज हो चुकी है जिसको हमेशा मुसलमानों का दुश्मन समझा जाता है पर सत्ता पर काबिज ये वो जमात है जिसमें सिर्फ मुसलमान ही नहीं दलित पिछड़े भी अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे है लेकिन इन दोनों बिरादरीयो के पास फिलहाल इनका सियासी हक लड़ने के लिए इनके अपने रहनुमा मौजूद है,दलितों के पास जहां एक ओर कांशीराम की तैयारी की हुई बीएसपी की मायावती नेता है तो वही पिछड़ों के पास यूपी के सबसे बड़े जमीनी नेता मुलायम सिंह यादव मौजूद है लेकिन बात फिर आकर अटक जाती है कि यूपी के बाइस फीसदी मुस्लिम आबादी की रहनुमाई कौन करेंगे या अब इस मुल्क में इस कौम का सियासी वजूद किया होगा तो इसके लिए हमको अजादी के दौर में चलना होगा मुसलमानों को सचचे मन से कहूँ तो असंगठित होकर रहने की आदद पड़ चुकी और अपने ही भाई का विरोध करने की कला में वो बेहद माहिर खिलाड़ी है अजादी के वक्त जब मौलाना अबुल कलाम आजाद साहब मुसलमानों को हिंद में रुकने की दुहाई दिल्ली की जामा मस्जिद से दे रहे थे तो उस वक्त के मुसलमानों ने उस वक्त भी उनकी आवाज़ को सिर्फ इसलिए अनसुना कर दिया था कयोंकि वहां से नेहरु या गांधी नहीं बल्कि एक कलमा गौ रुकने का वासता दे रहा था उसके बाद भी मुल्क में मुसलमानों ने उस कांग्रेस को अपना वोट दिया जो आजादी के पहले से ही मुसलमानों के खिलाफ हो चुकी थी पर मुस्लिम कौम आँखो में पट्टी लपटे कर तब तक कांग्रेस का साथ देती रही जब तक बिहार के भागलपुर जैसा नरसंहार मुसलमानों के साथ नहीं हो गया लेकिन जब तक खैर मुसलमानों के लिए सियासत में बहुत देर हो चुकी थी कयोंकि कांग्रेस से अलग होकर बड़े नेताओं ने अपनी सियासी लड़ाई तो शुरू करी लेकिन सिर्फ अपनी बिरादरी के लिए किसी ने दलितों के लिए संघर्ष किया तो किसी ने पिछड़ों के लिए मेहनत की पर किसी भी सियासी नेता ने मुसलमानों का मंच तक से नाम नहीं लिया वजह सिर्फ एक ही थी मुस्लिम बिरादरी का आपस में बड़े पैमाने पर बंटा होना ये मुसलमानों का आपसी बंटवारा ही था कि जब बाबा भीमराव अम्बेडकर दलितों के लिए लड़ रहे थे तो उनहोंने हिंदु ब्रामहणो से कहा था कि मैं सारे के सारे दलितों को मुस्लिम बना देता पर वहां भी वही वर्ण व्यवस्था लागू है वहा भी लोग आपस में बंटे हुए है इसलिए मै इन लोगो के लिए एक अलग धर्म बौद्ध धर्म अपनाने को प्रयासरत रहूँगा जिसमें वो काफी हद तक कामयाब भी हुए फिर उसके बाद दलितों की लड़ाई कांशीराम जी ने और बदलते वक्त के साथ मायावती ने संभाल ली ठीक उसी तरह जेपी के आंदोलन से निकले लालू यादव और मुलायम सिंह यादव ने पिछड़ों के लिए मेहनत की और वी.पी.सिंह जैसे क्षत्रिय समाज से आए नेता से पिछड़ों के हक के लिए मडंल की सिफारिशों को लागू करवा लिया देखा जाए तो आज तक दोनों ही दबे कुचले समाजों  ने अपने अपने समाज के नेताओं के पीछे खड़े होकर अपने हक की लड़ाई लड़ी और सत्ता तक पहुंचने में कामयाबी और वक्त के साथ राज भी किया पर मुस्लिम कौम सिर्फ वोट बैंक बनकर ही खुश रही और आजादी के सत्तर बरस बाद इस तरह सियासी तौर पर बर्बाद हुई की आज उनकी लड़ाई लड़ने की हिम्मत भी कोई नहीं कर रहा है वजह सिर्फ एक ही है मुस्लिम कौम कभी भी मौजूदा सियासी नफस को पकड़ने में कामयाबी नहीं हो सकी जिसकी वजह साफ है मुसलमानों ने कभी भी अपनी बिरादरी के रहबर की आवाज़ पर एक साथ खड़े होने की हिम्मत ही नहीं की बल्कि एक दूसरे की मौका मिलते ही पैरों के नीचे वाली जमीन ही बेच डाली मुसलमानों ने ना  ही कभी मौलाना अली जौहर की सुनी और न ही कभी अपने वक्त के आलीम ए दीन मौलाना अलीम मियां की सुनी जिन्होने बाबरी मस्जिद के शहीद होने के बाद अपने ही मुसलमानों भाईयों से कहा था कि जब तक तुम अल्लाह की बरगाह में एक साथ इबादत और वो भी बगैर छुटे नहीं अदा करोगे तब तक  कामयाब इंसान नहीं बन पाओगे लेकिन मुसलमानों ने उनकी इस सीख को भी बड़ी ही साफ गोई से दफन कर दिया और बड़ते वक्त साथ मुसलमानों में आपस में नफसा नफसी इतनी बड़ गई कि कोई भी एक दूसरे पर तोमत लगाने तक से बाज नहीं आ रहा है और पूरी की पूरी कौम सिर्फ शिया,सुन्नी,देवबंदी,बरलेवी में बंट कर रह गई है उसी का नतीजा ये है कि सियासी पलेटफरम पर सब के सब मजबूत हो गए और मुसलमानों के हाथ में आया तो बस एक उम्मीद का कटोरा पर आज भी हमारे पास एक ही रास्ता है और वो भी खासकर उत्तर प्रदेश में की हम मुस्लिम कौम वोट बैंक से बाहर निकले और आज़म ख़ान साहब को अपनी लड़ाई लड़ने के लिए आगे कर दे मौजूदा सियासी नफस को पकड़ने में माहिर आज़म ख़ान आज अगर किसी जगह कमजोर पड़ते है तो वो सिर्फ उनके अपने ही मुसलमानों भाईयों का किया गया विरोध है अगर अब भी मौजूदा सियासी नफस को मुस्लिम कौम नहीं पकड़ पाई तो आगे आने वाले वक्त के बाद तुम सियासी तौर पर पूरी तरह से बर्बाद हो चुके होगे तुमहारी लड़ाई सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा कोई अपना ही लड़ सकता है आखिर कब तक मायावती या मुलायम सिंह यादव या लालू यादव या सोनिया गांधी की तरफ निगाहें लगाकर देखते रहोगे पहले सब एक छत के नीचे आने की कोशिश करो और फिर किसी जगह धावा बोलकर अपनी मौजूदगी का एहसास कराओ ताकि हिन्दोस्तान की तारीख में ये नारा बुलन्द हो सके “जिसकी जितनी संखयाभारी उसकी उतनी हिस्सेदारी”…..।

( लेखक जाने माने समाज सेवी एवं विश्लेषक हैं, ये उनके विचार हैं)

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