ईमानदार राजनीतिज्ञ और किसान हितैषी थे चौधरी चरण सिंह : मणेन्द्र मिश्रा “मशाल “
May 29, 2017 2:30 am
देश की आजादी के शुरूआती दशकों में जब जनसंचार माध्यमों की पर्याप्त उपलब्धता भी नहीं थी ऐसे में गांव गिरांव से जुड़कर किसानों की लड़ाई लड़ने वाले नेता की पहचान अखिल भारतीय स्तर पर किसान मसीहा के रुप में स्थापित होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है।ऐसे में चौधरी चरण सिंह समकालीन पीढ़ी के लिए उस दौर के अचंभित करने वाले नेता के तौर पर ही पहचाने जाते हैं। आज भी सुदूर ग्रामीण अंचलों में जब किसानो के हक और हकूक की लड़ाई लड़ने की बात आती है तब लोगों की जुबान पर बरबस चौधरी साहब का नाम सहज ही आ जाता है।
चौधरी चरण सिंह ने अपनी पूरी राजनीतिक यात्रा के दौरान स्वयं की ग्रामीण पृष्ठभूमि सहित जमीनी पहचान को लेकर किसी भी मंच पर कभी संकोच नहीं किए बल्कि पूरी ठसक के साथ लाल किले के प्राचीर से बोलते हुए खेती-किसानी और नौजवानों के रोजगार को ही मुद्दा बनाते रहे।जहां एक ओर उन्होंने राजनीतिक भ्रष्टाचार से खुद को आजीवन बचाए रखा,वहीं दूसरी ओर अपने से जुड़े लोगों की शुचिता और साख के मजबूत बने रहने के लिए विशेष अनुशासन के नियम को बनाए रखा। यह उनके व्यक्तित्व का ही असर था कि राजनीति में गलत और अन्याय करने वाला शख्स कभी भी उनके सामने नहीं आ सकता था।देश के शीर्षस्थ पद पर पहुंचने की यात्रा के दौरान वे राग-द्वेष से पूरी तरह मुक्त रहकर अपने दिनचर्या का संपूर्ण समय समाज के वंचित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के विषय में कार्य करते रहे। चौधरी साहब के लेखन को पढ़ने और समझने से एक दृष्टि पैदा होती है कि कैसे राजनीति में रहते हुए चकाचौंध से दूर रह कर आमजन के हित का काम पूरी ईमानदारी से किया जा सकता है।
“मेरे सपनों के भारत” विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने पाँच बिन्दुयों पर अपनी बात कही थी कि प्राथमिक आवश्यकताएं सब की पूरी हो, ऐशो-आराम की चीजें नहीं। दूसरे सब को रोजगार मुहैया हो,तीसरे अमीरों और गरीबों में अंतर कम से कम होता जाए।चौथे यह कि हर आदमी ईमानदार हो अर्थात देश में भ्रष्टाचार ना हो और हर आदमी रोटी कमाने के काम में स्वतंत्र रहे, अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करता रहे।पांचवें यह कि हर आदमी अपने मुल्क को तरक्की की बुलंदियों तक पहुंचाने का स्वप्न देखे और एक यह भी कि भारत में ऊंच-नीच का भेदभाव बिल्कुल ना रहे।इसके साथ ही चौधरी साहब ने एक ठोस आर्थिक नीति का मॉडल प्रस्तुत किया जिससे देश की गरीबी और बदहाली को दूर करने का रास्ता सुझाया जा सके।
गांधीवादी परंपरा के चौधरी चरण सिंह ने अपने पूरे सार्वजनिक जीवन में व्यक्तिगत संपत्ति के आग्रह से पूरी तरह दूर रहे,लेकिन उनकी उंगली पकड़कर राजनीति का ककहरा सीखने वाले और चौधरी साहब की पहचान से राजनीति करने वाले लोगों ने उस महान धारा को सुसुप्त कर दिया।हालांकि बीते कुछ वर्षों में जिस तरह किसान मुद्दों और किसानों का दखल एक दबाव समूह के रूप में राजनीति में उभरा है उससे एक संभावना नजर आती है कि मौजूदा समाजवादी धारा का नेतृत्व चौधरी चरण सिंह की सोच को एक मुक्कमल पहचान देने में सफल होगा।जमीनी संघर्ष,सिद्धांत और जनसमर्थन के संगम से ओतप्रोत चौधरी चरण सिंह के विचारों का जो प्रचार-प्रसार होना चाहिए था नहीं हो पाया, बावजूद इसके उनके निधन के तीन दशक बाद भी पूरे देश में जब भी किसानों की बात होती है चौधरी साहब के बिना अधूरी रहती है।ऐसे में किसान हित के पर्याय रहे चौधरी साहब के विषय में जानना बेहद समीचीन है।तब जबकि राजनीतिक व्यवसाय,विचारहीनता और पदलोलुपता के मकड़जाल में उलझता चला जा रहा है। ऐसे में चौधरी चरण सिंह की याद बेपटरी हो चुकी राजनीति में एक प्रकाशपुंज की भांति प्रतीत होती है जिनके बताए रास्ते पर चलकर समाज में समृद्धि और समरसता कायम की जा सकती है।उनकी पुण्यतिथि पर स्मरण और किसान-नौजवान की लड़ाई का समर्थन ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मणेंद्र मिश्रा ‘मशाल’
संस्थापक-समाजवादी अध्ययन केंद्र