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कानपुर कैंट : क्यों ज़रूरी हैं पूर्व सांसद अतीक अहमद इस सीट के लिए , पढ़ें – पूरी खबर

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जीएच कादिर ” प्रभाव इंडिया “ के लिए

कानपुर । छावनी कानपुर जिले की पहली विधानसभा आजादी के बाद बनी थी। यह सीट मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती रही है, क्योंकि यहां पर इस समुदाय के लगभग 65% मतदाता हैं। लेकिन यहां से हिन्दू समुदाय के लोग ही जीतकर विधायक बनते आ रहे हैं। 2012 के परसीमन के बाद इसका नाम कैंट हो गया और भाजपा के रघुनंदन भदौरिया सपा के रूमी को हराकर विधायक बने। 2017 के चुनाव में भाजपा को छोड़कर हर दल ने यहां से मुस्लिम चेहरे को टिकट दिया है। इस सीट पर बसपा ने  डॉक्टर नसीम अहमद को टिकट देकर उन्हें यहां से कैंडीडेट घोषित किया था। सपा ने बसपा को टक्कर देने के लिए पर्वेज अंसारी को एक साल पहले अपना प्रत्याशी घोषित किया था। लेकिन दिसंबर में सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पर्वेज का टिकट काटकर इलाहाबाद के बाहुबली अतीक अहमद को कैंट से टिकट देकर सभी दलों को चौंका दिया। बसपा ने अतीक को हर हाल में यहां से हराने के लिए रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। हलांकि अब सीएम  अखिलेेश ने सपा सेे अतीक अहमद का टिकट अपनी लिस्ट से काट दिया है , जो लोगो केे गलेे नही उतर रहा है ।

कैंट में 1 लाख 25 हजार अंसारी मतदाता

कैंट विधानसभा सीट में 3,54,765 वोटर हैं। उनमें भी लगभग एक लाख 25 हजार के आस-पास अंसारी मुस्लिम मतदाता हैं। ऐसे में बसपा की कोशिश है कि अंसारियों को आगे करके सीट पर कब्जा किया जाए। वहीं सपा से टिकट काटे जाने से पर्वेज अंसारी नाराज चल रहेे हैं। अगर ऐसा हुआ तो सपाा के लिए कैंट का चुनाव जीतना टेढ़ी खीर साबित होगा। क्योंकि साल 2012 के चुनाव के दौरान अंसारी मत सपा की बजाय बसपा को गया था। इसी के चलते सपा कैंडीडेट रुमी को हार उठानी पड़ी थी। जानकरों का मानना है कि यहां के अंसारी मतदाता बसपा और कांग्रेस के साथ ही भाजपा को अपना मत देते आ रहे हैं। शायद इसी केे चलतेे पूूर्व मेे शिवपाल यादव नेे अतीक को टिकट दिया था, जो खुद अंसारी बिरादरी से ताल्ललुक रखते हैैं ।

 हिन्दू-मुस्लिम फैक्टर करता है इस सीट पर काम ।

बता दें कि इस सीट पर हिन्दू-मुस्लिम आधार पर चुनाव होता है और चूंकि इस क्षेत्र में हिन्दू और मुस्लिमों का अनुपात 65:35 का है। इसके अलावा सपा और बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के कारण भी मुस्लिम वोट बंट जाते हैं, जोकि भाजपा के इस सीट पर दबदबे का कारण बना हुआ है।

भाजपा हैट्रिक तो कांग्रेस चार बार लहरा चुकी हैै परचम ।

1967 डीएस बाजपेई – कांग्रेस
1969 मनोहर लाल – बीकेडी
1974 श्याम मिश्रा – कांग्रेस
1977 बाबूराम शुक्ला – जेएनपी
1980 बुधनारायण – कांग्रेस
1985 पशुपतिनाथ – कांग्रेस
1989 गणेश दक्षित – जेडी
1991 से अब तक – बीजेपी (सतीश महाना और रघुनंदन भदौरिया)

पिछला परिणाम

2012 के विजेता : रघुनंदन सिंह भदौरिया ( भाजपा )
वोट मिला :42,551
उप विजेता : मो० हसन रूमी ( सपा) वोट मिला -33,241
हार जीत का फर्क : 9308

 ( लेखक राजनैतिक विश्लेषक हैं , प्रभाव इंडिया के एडिटर हैं   Mob.  9935878532 )

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