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मुसलमानों की मौजूदा सियासी दिशा और दशा को बयान करता , वरिष्ठ समाजसेवी नकी हैदर का लेख

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नकी हैदर 

14 अगस्त 1947 को दिल्ली की जामा मस्जिद से मौलाना अबुल कलाम आजाद साहब ने टूटते बिखरते मुसलमानों को एक आवाज़ लगाई थी कि देखो मुसलमानों, अगर आज तुम- इस मुल्क में नहीं रुके, अगर आज तुमने अपनी हैसियत को नहीं समझा तो, याद रखना जो मुसलमान आज पाकिस्तान का रुख कर रहे है उनको कभी पाकिस्तान में इज्जत नहीं मिलेगी और जो बचे हुए मुसलमान हिन्दोस्तान में रह जाएगे वो आगे आने वाले सत्तर बरस बाद अपनी सियासी मुकाम को खो बैठेंगे । उनकी हालत इस तरह की हो जाएगी कि उनकी आवाज़ को उठाने वाला भी कोई नहीं बचेगा ।

मौलाना अबुल कलाम आजाद साहब की इन बोली गई बातो पर गौर किया जाये और मौजूदा हालात को देखें, तो साफ पता चलता है कि कलाम साहब भारत की सियासत में लम्बी सोच और दूरदर्शी निगाहें रखने वाले इंसान थे । लेकिन यह हम मुसलमानों की सबसे बड़ी सियासी अक्लमंदी रही है कि हमने हमेशा अपनो का ही विरोध किया है । उस वक्त अबुल कलाम आजाद साहब की नहीं सुनी और आज वो तमाम सियासी लीडर है, जो हमारी लड़ाई लड़ने की हिम्मत करते है तो हम लोग आपस की अक्लमंदी में उन सियासी नेताओं का विरोध करने लगते है । मै आज मौजूदा किसी सियासी नेता का नाम इस लेख में नहीं लिखूंगा वर्ना हम जैसे अकलमंद मुसलमान समझेंगे कम,  नाम सुनते ही सियासत को अपने पावजेब बनाने लग जाएगे । बल्कि आज की सबसे बड़ी हकीकत यह है कि हर कौम अपने को सियासी तौर पर मजबूत कर रही है और मुसलमान अपने सियासी सोच को इस मुल्क में दफनाने के काम में लगा हुआ है । यह हालात एक लोकतांत्रिक देश में इतनी बड़ी संख्या में रहने वाले मुसलमानों के लिए शुभ संकेत नहीं है । अब हालत को सुधारने के लिए समझदार मुसलमानों को खुद आगे आना होगा ।

 

( लेखक वरिष्ठ समाजसेवी, शिक्षााविद और समाजवादी विचारक हैं , ये उनके विचार हैं )

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