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रक्षाबंधन पर विशेष : समस्त नारी जगत के लिए महत्त्वपूर्ण है यह पर्व । पढ़ें , शिक्षाविद इमरान लतीफ का लेख
August 7, 2017 12:22 pm
क़ाज़ी इमरान लतीफ़
एक लंबे अरसे से उत्तर प्रदेश सहित देश भर मे महिला उत्पीड़न पर चल रही वृहद् चर्चा को देखने के बाद मुझे लगा कि नारी शक्ति के इतिहास और उनकी वर्तमान स्थिति पर मुझे एक विस्तृत अध्ययन-शोध अवश्य करना चाहिए। इस विषय पर जब मैंने सोचना प्रारम्भ किया तो मेरे ज़हन में पहली दस्तक रक्षाबंधन के पावन पर्व ने दे दी, फिर मैंने सोचा क्यों ना इसे ही केंद्र-बिंदु मानकर अध्ययन को आगे बढाया जाए।
हमारे देश की संस्कृति एवं संस्कारों के उलट समाज ने नारी को सदैव कमज़ोर और शक्तिविहीन ही समझा भले ही समय समय पर नारी जगत ने अपनी शक्ति का सकारात्मक प्रदर्शन आवश्यकता होने पर बखूबी किया हो। क्यों ना समाज का एक बड़ा हिस्सा नारी शक्ति की पुरजोर अनदेखी करता हो लेकिन हमें ये तथ्य स्वीकार करने से बिलकुल भी गुरेज नही करना चाहिए कि महिलाओं के पास एक सबसे बड़ी शक्ति होती है और वो है “”संकल्पशक्ति””।
रक्षाबंधन का पर्व आम तौर पर भाईओं द्वारा बहनों की रक्षा करने के संकल्प से जोड़कर देखा जाता है जबकि मेरे विचार शायद बाकियों से बिलकुल भिन्न है, मैं ये समझता हूँ कि जब भी कोई बहन (नारी) अपने भाई (पुरुष) की कलाईयों में राखी के पवित्र बंधन को सजा रही होती है तो मन ही मन वो संकल्प लेती है की मैं (नारी समाज) जीवन भर आपकी (पुरुष समाज की ) रक्षा करुँगी, यही कारण है कि एक महिला जीवन भर अपनी मज़बूत इच्छाशक्ति एवं अनोखी आतंरिक मजबूती के दम पर सदैव पुरुष की रक्षा करती है और उसे जीवन की बाधाओं से निपटने के लिए अथाह शक्ति व ऊर्जा प्रदान करती है।
अगर बात भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों की हो तो हमारी संस्कृति या इतिहास ने कभी भी महिलाओं को कमज़ोर अथवा शक्तिविहीन नही समझा है, और जितना सम्मान भारतीय संस्कृति ने महिलाओं को दिया है उतना शायद ही कहीं और संभव हो। हमारे इतिहास ने हमारे सामने ऐसे हजारों उदाहरण प्रस्तुत किये हैं जिससे हमें महिलाओं के भीतर की अपार शक्ति का ज्ञान होता है। मसलन सावित्री का किस्सा आप सभी के सामने कभी न कभी पेश आया ही होगा। अपने पति सत्यवान के प्रति सावित्री का समर्पण इतना शक्तिशाली था कि इसी के दम पर उसने यमराज से सत्यवान की ज़िन्दगी की जंग जीत ली। जहाँ तक मैं समझता हूँ एक आदर्श भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक सम्मान मिलना चाहिए क्युकी ये अधिकार उन्हें हमारी संस्कृति ने ही दे रखा है, अब आप स्वयं ही देख लीजिये हमारे यहाँ पहले राधे कहा जाता है फिर श्याम या मोहन, पहले गौरी कहा जाता है फिर शंकर, पहले सीता आती हैं फिर राम। अब आप स्वयं ही निर्धारित कर लीजिये किसे अधिक सम्मान मिलना चाहिए महिलाओं को या पुरुषों को।
बात अगर मज़हब ए इस्लाम की हो तब मुझे इस्लामी तारीख के बड़े विद्वान् और शिया समुदाय के छठवे इमाम हज़रत जाफर सादिक का एक कथन याद आता है, उनका कहना है जब आप आप अपने घर में दुल्हन ब्याह कर लाओ तो सबसे पहले उसके दोनों पैरों को पानी से धुलो और उस पानी को एक बर्तन में इकठ्ठा करो, फिर उसी पानी का छिडकाव अपने घर के चारो तरफ करो, इससे घर में तरक्की व खुशहाली आती है। हमारे रसूल हज़रत मुहम्मद (स) और उनके मशहूर सहाबी और पहले इमाम हज़रत अली का हज़रत फातिमा के प्रति सम्मान और अथाह प्रेम हमें निश्चित रूप से नारी शक्ति के सम्मान का रास्ता दिखाता है। हजरत मुहम्मद (स) के बारे में ये बात बहुत ही प्रसिद्द है कि जब भी उनकी बेटी हजरत फातिमा उनके घर आती थी वो उनके सम्मान में खड़े हो जाया करते थे। अब आप फैसला कीजिये वर्तमान भारत में निवास करने वाली दो प्रमुख विचारधाराओं-संस्कृतियों ने महिलाओं को कितना सम्मान दिया है। निश्चित रूप से आदर्श भारतीय समाज में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक सम्मान मिलना चाहिए।
किन्तु वर्तमान सामाजिक परिवेश में तस्वीर इससे बिल्कुल उलट है कहाँ महिलाओं को हमसे अधिक मान सम्मान मिलना चाहिए और कहाँ आज नारी शक्ति की दुर्गति दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही है। आपको पता है जब कोई समाज अपनी ही सभ्यता और संस्कृति के विपरीत आचरण करने लग जाता है तो समझ लेना चाहिए कि वो अपने पतन की तरफ अग्रसर हो चला है, क्या हम अपने ही पतन की तरफ नही बढ़ रहे हैं ? क्या पुरुष समाज द्वारा महिलाओं के ऊपर किये जा रहे अत्याचार इस बात की तरफ इशारा नही करते कि पुरुष समाज का एक बड़ा हिस्सा आत्मघाती सोच रखता है ? आखिर हम ये बात कब समझेंगे कि समाज के विकास में एक महिला का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, और महिलाओं की भागीदारी ही ये निर्धारित करती है कि कोई भी समाज कितना सामंजस्यपूर्ण और शक्तिशाली होगा। हम कहने को तो हर मंच से यही कहते हैं कि महिलाएं समाज की रीढ़ होती हैं लेकिन आखिर इस सच्चाई को हम सच्चे ह्रदय से स्वीकार कब करेंगे ? हम कब ये मान लेंगे कि महिलाएं अपनी भावनात्मक शक्ति के दम पर आतंरिक रूप से इतनी शक्तिशाली होती है कि उनकी इस शक्ति के सामने हमारी बाहरी शारीरिक शक्ति का कोई मोल और मुकाबला नही है ?
इस बार रक्षाबंधन के पावन पर्व पर हमें सिर्फ धागा बंधवाकर और मिठाईया खा खिलाकर इतिश्री नही कर लेनी है, इस बार हमें संकल्प लेना होगा कि हम राखी के इस पावन बंधन में निहित मूल्यों और अर्थों को सच्चे ह्रदय से समझेंगे और स्वीकार करेंगे। इस बार हमारी कलाई पे बंधी राखी सिर्फ हमारी अपनी बहन की तरफ से नही है बल्कि ये समस्त नारी जगत की रक्षा की सूचक है, ये हमें प्रण लेना है।
नारी जगत के प्रति संवेदनशून्य होते जा रहे है पुरुष समाज के भीतर सकारात्मक चेतना का संचार करने के हरसंभव प्रयास किये जाने होंगे। हमारा दृढ संकल्प होना चाहिए कि समाज में जिस तरह से विकृत मानसिकता के लोगों का दबदबा बढ़ता जा रहा है उन्हें निष्क्रिय करने के लिए हम जीवन भर प्रयासरत रहेंगे।
आप सभी को रक्षाबंधन के पावन पर्व की अनन्त बधाईयां व शुभकामनाएं !
( लेखक शिक्षाविद हैं और आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं, यह उनके विचार हैे )