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राम- रहीम के कारनामे को आस्था पर गहरी चोट मान रहे हैं, डाॅ० दीपक श्रीवास्तव, पढ़ें – उनका पूरा लेख
September 1, 2017 9:20 am
डॉ० दीपक श्रीवास्तव ” प्रभाव इंडिया ‘के लिए
भारतअपनी,नैतिक,आध्यात्मि,धार्मिक,चारित्रिक, योग,दया,तप,त्याग तपस्या जैसे दिव्य, ईश्वरीय ज्ञान के बल पर दुनिया को अपनी दिव्य आलोक से अभिरंजित कर विश्वगुरु बना।हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन के जो आदर्श प्रतिमान,मानवीय मूल्यों की जो आधारशिला रखी उसी पर हमारे समाजिक जीवन की वैभवशाली इमारत खड़ी है।हमारी संस्कृति इनकी परिपोषिका एवं वाहिका है। हमे हमारे पूर्वजों की इस थाती पर गर्व है। हमारी अपनी विरासत में मिली इस परंपरा वेदों, पुराणों,गीता रामायण महाभारत, पर नाज है। सम्पूर्ण भौतिक विश्व जब दुख से कातर हो उठता है, अश्रुपूरित नजरो से हमारी ओर निहारता है हम ने उन असहाय लोगों में आशा का संचार किया है ।हमारे आदि ग्रन्थों में जीवनके प्रत्येक समस्या का सूत्र एवं समाधान ऋषियों-मुनियों ने बताया है। हमारे देवी- देवता पर्व-त्योहार,हमारे संत-महात्मा हमारी आस्था के मंदिर हैं। हमारे सांस्कृतिक मूल्योंके रक्षक हैं। हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं या यूँ कहें हमारी धड़कन है।हमारी साँस हैं।हमारी आत्मा हैं।हमारे रोम-रोममें उनके प्रति असीम श्रद्धा होती है।हम अपना सबकुछ यहाँ तक की खुद को उनके चरणों मे अर्पित कर देते हैं।
उनकी आलोचना तक नहीं सुन पाते।उनकी अंध भक्ति,मीठे प्रवचनों को सुन अभिभूत हो उठते हैं ,भावविह्वलऔर द्रवित हो उठतेहैं।उनके सम्मोहन में बंध जाते हैं। देश की करोड़ो करोड़ जनता नित प्रति उनके लिएबन्दनवार सजाती है।उनका ध्यान करती है। आरती उतारती है।हमारे ग्रन्थों ,सन्तो ने गुरु को परमात्मा के समान माना है।
‘गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर:, गुरु साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मीन श्री गुरुव नम:’ । कबीर ने गुरु की महिमा का बखान करते हुए यहाँ तक कहा है-
“यह तन विष की वेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश देय गुरु मिले ,तो भी सस्ता जान।”
“गुरु गोबिंद दोउ खड़े, काको लागूँ पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो बताय।”
समय- समयपर ठग बाबाओं के कारनामे उनके ठगी के धंधे तो उजागर होते रहे है लेकिन पहले आशाराम बापू,रामपालऔर अब गुरमीतराम रहीम के चरित्र की नैतिक पतन ने देश को शर्मसार करके रख दिया।उनके काले कारनामो ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।इससे करोड़ो लोगों की आस्था को गहरी चोट पहुँची है। देश के साधु संतों के प्रति आमजनों की धारणा ठीक नहीं बनेगी तथा नकारात्मक सोच बढ़ेगी । विश्व मे भारतीय सन्तो की छवि धूमिल होगी।उनकी बहुत बदनामी होगी। अन्य धर्मावलम्बियों को दुष्प्रचार का मौका मिल सकता है। जो वास्तविक सन्त हैं उन्हें भी शक की दृष्टि से देखा जा सकता है। क्योंकि एक कहावत है कि जव के साथ घुन भी पीस जाता है। एकबात और हमारी न्यायिक प्रक्रिया भी बहुत लंबी चलती है।
काफी समय लग जाता है किसी मुकदमे की सुनवाई में।कई बार तो गवाह हीं मर जाते हैंऔर कभी मुकदमा लड़ने वाला हीं।पीड़िता इतने दिनों तक जो मानसिक पीड़ा द्वंद ,समाजिक उपेक्षा एवं प्रताड़ना का दंश झेलती है उसकी भरपाई कैसे की जा सकती? अतः न्याय त्वरित कैसे प्राप्त हो?इस दिशा में भी कदम उठाने की आवश्यकता है। न्यायिक प्रक्रिया में भी सुधार की जानी चाहिये।
(लेखक एक टीवी चैनल के पत्रकार और सिद्धार्थनगर ज़िले के पत्रकार संघ के संरक्षक है , यह उनके विचार हैं )