उत्तर प्रदेशजिलेवार खबरेंबलरामपुरबस्तीमहाराष्ट्रविचारशख्सियतसमाजसिद्धार्थनगर
शख्सियत : डा० वजाहत हुसैन रिज़वी ने जुनून की हद तक की है उर्दू अदब की सेवा
September 25, 2017 2:18 am

प्रभाव इण्डिया
लखनऊ:अक्सर देखा गया है कि सरकारी कर्मचारियों की पहचान बस इतनी होती है कि वह किसी विभाग में अमुक पद पर कार्यरत रहे, या वह बहुत कठोर या नरम अधिकारी थे । मगर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो इन सब मिथक को तोड़ते हैं और अपनी सेवाओं और प्रतिभा को कई और क्षेत्रों में बढ़ाते हुए नाम कमाते हैं। डॉ वजाहत हुसैन रिजवी एक ऐसे ही व्यक्ति हैं। वर्तमान में मेरठ में उप निदेशक, सूचना और जनसंपर्क के रूप में तैनात डॉ रिजवी ने उर्दू साहित्य के क्षेत्र में उन प्रख्यात उर्दू कवियों और लेखकों के 22 विशेष संस्करण प्रकाशित किए जिन्हें लोग धीरे धीरे भुलाने लगे थे।
उनकी सेवाकाल के दौरान उच्च अधिकारीयों ने उनकी क्षमताओं को पहचाना और डॉ0 रिजवी को यूपी सरकार की उर्दू पत्रिका “नया दौर” का संपादक नियुक्त किया गया। उनसे पूर्व तक नया दौर पत्रिका अनियमित थी और कुछ पन्नों में यूपी सरकार की उपलब्धियों को प्रकाशित करने तक ही सीमित थी। लेकिन डॉ0 रिज़वी ने नया दौर को नया रूप नया जीवन दिया। उन्होंने पत्रिका के ऐसे विशेष संस्करण प्रकाशित किए जो एक यादगारी दस्तावेज़ बन गए।
विशेष रूप से उर्दू कवियों और लेखकों के कामों को उजागर करने और प्रकाशित करने वाले विशेष संस्करणों में अली जवाद ज़ैदी, इरफान सिद्दीकी, शकील बदायुनी , खुमार बाराबंकवी , असरारुल हक़ मजाज, जांनिसारअख्तर, वाली आसी, रशीद हसन, मीर तकी मीर , कुरात्रुल ऐन हैदर, महमूद इलाही, मुंशी द्वारिका प्रसाद उफ़ुक़ , एहतिशाम हुसैन रिजवी, सआदत हसन मंटो, कमर रईस , अफगान उल्लाह खान इत्यादि। डॉ0 रिजवी ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर, 1857 का विद्रोह और उर्दू पत्रकारिता पर विशेष संस्करण भी प्रकाशित किए। ये सभी विशेषांक अमूल्य धरोहर बन गए हैं और आज भी छात्र और रिसर्च स्कालर्स उनसे लाभान्वित होते हैं | इन विशेषांकों की एक प्रति प्राप्त करने के लिए वह सूचना निदेशालय के चक्कर काटते हैं।
सिद्धार्थगर ज़िले के हल्लौर गाँव के मूल निवासी डा0 रिजवी ने अपनी लेखनी की रफ़्तार को जारी रखते हुए अपनी सातवें पुस्तक प्रकाशित की है। डॉ0 रिज़वी ने कई प्रतिष्ठित लेखकों की कृतियों का भी अनुवाद किया है। उनका नया प्रयास “मैं मोहाजिर नहीं हूँ” , बादशाह हुसैन रिजवी की किताब का अनुवाद है। डॉ वजाहत हुसैन रिजवी कहते हैं “हमें अपनी महान विभूतियों के काम को सुरक्षित बनाये रखने की आवश्यकता है नहीं तो आने वाले पीढ़ी उन्हें भूल जायेगी । उन्होंने कहा कि विभिन्न कवियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करते समय मुझे बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा और आश्चर्य इस बात पर हुआ कि उनके परिवार के सदस्यों को भी उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी”। उनकी किताबें यूपी उर्दू अकादमी द्वारा प्रकाशित की गई हैं और उन्हें पुरस्कार भी प्राप्त हुए है। डा० रिजवी ने अली जवाद ज़ैदी पर साहित्य अकादमी के लिए एक मोनोलॉग भी लिखा है। उनके द्वारा फ़िरक गोरखपुरी की शायरी पर उर्दू में लिखी किताब का हिंदी अनुवाद साहित्य प्रेमियों द्वारा बहुत पसंद किया गया |
डा0 रिज़वी कहते हैं कि उन्हें पता है कि अपने आधिकारिक काम से समय निकालना मुश्किल है लेकिन यह संभव है यदि आप इसके बारे में जज़्बाती हो। मैं आभारी हूं कि मुझे यह ज़िम्मेदारी दी गयी। मैं अभी भी अपने आप को एक श्रमजीवी किसान मानता हूं जो अपने खेतों में हल जोतता है। मेरे लिए मेरी कलम ही मेरा हल है “।
कई पुरस्कारों के साथ सम्मानित, डा0 रिजवी को यूपी सरकार ने भी उनके साहित्यिक कौशल के लिए एक कर्मचारी के रूप में धरोहर मानते हुए सम्मानित किया है।
(स्रोत:INSTANT.खबर)