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नज़रिया : सपा मुखिया अखिलेश यादव को “भैया” से निकल कर “अध्यक्ष जी” बनना होगा ! क्यों ? पढ़िये , राजनीतिक विश्लेषक जीएच कादिर का लेख
May 13, 2018 8:31 am
जीएच कादिर ‘प्रभाव इंडिया ‘
समाजवादी पार्टी की सियासत में पूर्व सीएम अखिलेश यादव निर्विवाद रुप से सर्वमान्यनेता के रूप में उभरे हैं, पार्टी के अंदर उनके समकक्ष फिलहाल कोई नहीं है , इसे सभी मानते हैं ।
अखिलेश यादव को पार्टी के नौजवान नेता लोग आज भी प्यार से भैया कहते हैं । सवाल यह उठता है कि भैया शब्द से अखिलेश का महिमा मंडन होता है अथवा कुछ चाटुकार नेताओं का हित सधता है । मेरा मानना है भैया शब्द से अखिलेश का व्यक्तित्व हल्का होता है, वह देश के सबसे बड़े राज्य के सफल मुख्यमंत्री रह चुके हैं और समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो हैं , ऐसे में उन्हें अध्यक्ष पद से संबोधित किया जाना ही श्रेयस्कर होगा , क्योंकि इस शब्द से उनके व्यक्तित्व में एक वज़न पैदा होगा । हो सकता है कुछ सपाई मेरी बातों से असहमत हों लेकिन इस पर ग़ौर तो किया ही जा सकता है । इसकी वजह भी साफ दिखाई देती है । यदि आप अध्यक्ष जी नही बन पाएंगे तो आपकी सर्वमान्यता भी नहीं बन पाएगी । सियासत में पार्टी के अंदर खुद को बड़ा बनाये रखने की जितनी चुनौती होती है उससे कहीं ज़्यादा मतदाताओं के बीच अपने को अलग औऱ भारी भरकम बनाये रखने का उपाय लगातार खोजते रहना होता है । मुख्यमंत्री और अध्यक्ष पद कैसे मिला है , सब जानते हैं और उनकी योग्यता और हाजिर जवाबी के सभी क़ायल हैं । लेकिन भारतीय राजनीति का जो सबसे बड़ा दुखद पहलू यह है कि पचास से कम आयु के सियासत दानों को अपरिपक्व मानने लगते हैं और 60 वर्ष तक नौजवान । इसलिए अखिलेश के रणनीतिकारों को यह सोचना होगा कि उन्हें भैया शब्द या अध्यक्ष जी के उद्बोधन से लाभ है या हानि है क्योंकि राजनीति का सारा खेल बोलचाल, कपड़ा और हावभाव से जुड़ा होता है । पूर्व मुख्यमंत्री भले ही अपने कार्यकाल को सफलता पूर्वक पूरा किया हो लेकिन अभी उन्हें ज़मीन से जुड़ना होगा , मतदाताओं के मन में उनकी भारी भरकम छवि को पेवस्त करना होगा , अन्यथा की दशा में यह समाजवादी पार्टी के लिए आंकलन का विषय भी बन सकता है । हालांकि भैया शब्द ऐसा नहीं है कि इसे सम्मान की निगाह से नहीं देखा जा सकता है लेकिन किसी राजनीतिक पार्टी को चलाने वाले व्यक्ति को अध्यक्ष जैसे शब्द से संबोधन न किया जाना भी उचित नहीं है । भारतीय समाज में कुछ शब्द घर के लिए हैं तो कुछ रूतबा और सम्मान के लिए है । वैसे यह मामला समाजवादी पार्टी के घर के अन्दर का है लेकिन सियासत में आंकलन होना भी बहुत ज़रूरी है ।
( लेखक प्रभाव इंडिया से जुड़े हैं, राजनीति और समाज पर नज़र रखते हैं इनका व्हाट्सएप नम्बर है 8173990923 )