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त्वरित प्रतिक्रिया ■ भारत में पर्यावरण समस्या चुनावी मुद्दा क्यों नहीं ? पढ़ें – वरिष्ठ पत्रकार रुद्र कुमार दूबे का लेख
July 15, 2018 4:53 am
Environmental science teaches the human beings to use natural resources more effectively without harming the environment.
हालाँकि 1950 में लागू हुआ भारतीय संविधान सीधे तौर पर environmental protection के provisions से नहीं जुड़ा था और सन् 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन ने ही पहली बार भारत सरकार का ध्यान environmental protection की ओर खींचा लेकिन फिर इसके बाद सरकार सचेत हुई और 1976 में संविधान में amendment कर दो जरुरी पैराग्राफ 48A तथा 51A (G) जोड़ा।
एक वेलफेयर स्टेट के तौर पर हालाँकि सरकार देर से जगी लेकिन बावजूद इसके भारत दुनिया के उन कुछ सबसे पहले मुल्कों में एक था जिसने पर्यावरण को साइंस की ही एक अलग ब्रांच बना कर एजुकेशन सिलेबस में इस्तेमाल किया था. 1980 से भारतीय विश्वविद्यालयों में इन्वायरमेंटल साइंस पर पढ़ाई शुरू हुई.
लेकिन उसके बाद ! हम आज तक पर्यावरण को लेकर कितना शिक्षित हो पाए हैं ?
यूनिवर्सिटीज़ में अलग विषय होते हुए भी बेहद मुश्किल है कि इस सब्जेक्ट के लेक्चरर के लिए वैकेंसी निकले, वहाँ कोई ज्योग्राफी का टीचर ही सब्जेक्ट को पढ़ा देता है। एम.फिल. या पीएच.डी. तो दूर की बात, उँगलियों पर गिन लेने वाले लोग ही इन्वायरमेंटल साइंस में डिप्लोमा करते हैं। हमारे यहाँ पर्यावरण पर कितने शोध पत्र आए हैं अब तक ! बच्चों को पता ही नहीं है कि इसमें करियर की सम्भावनाएँ क्या-क्या हैं। पर्यावरण के फील्ड में अब तक देश में हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कामों की लिस्ट तो बहुत दूर की चीज़ है सिर्फ पैसिफिक गारबेज पैच क्या है और बीएस 6 इंजन क्या है, ये ही अधिकांश लोग जानते नहीं।
स्कूल की हालत तो और भी ख़राब है। इतने सालों बाद भी हमारे यहाँ स्कूलों में कोई भी टीचर पर्यावरण पढ़ा देता है। स्कूल मैनेजेर, प्रिंसिपल या एडमिनिस्ट्रेशन शायद ये बात जानता ही नहीं की पर्यावरण विज्ञान केवल distinction of pollution तक ही सीमित नहीं है, ये बहुत ही डायनामिक सब्जेक्ट है। होना तो ये चाहिए था की स्कूलों में पर्यावरण और disaster को बिल्कुल अलग 100 नंबर का विषय बनाना चाहिए लेकिन इस पर सरकारों और प्रबंधन की ओर से जरुरी काम नही हुआ। अगर ये होता तो कोर्ट या सरकारों को पॉलीथीन पर रोक ना लगानी पड़ती, जनता खुद आगे आ कर इसके इस्तेमाल से बचती। पढ़ाई से थोडा अलग चलें तो पाएंगे हमारे देश में सामाजिक विमर्श भी कभी पर्यावरण के संदर्भ में नहीं किए जाते। कितनी सामाजिक चर्चाओं में हम यूनिवर्सल इंयूनाइज़ेशन पॉलिसी के उन 12 रोगों पर बात करते हैं जिन में से अधिकतर की जड़ में कहीं न कहीं किसी तरह का प्रदूषण शामिल है।
हालाँकि Article 51A (G) भारतीय नागरिकों को ये कर्तव्य प्रदान करता है कि वे ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे तथा उसका संवर्धन करे.’ (protect and promote the natural एनवायरनमेंट) लेकिन जब एक ऐसा विषय जिस पर हमारा-आपका और हमारे बच्चों का भविष्य निर्भर करता है उस पर हम सब आखें बंद करके बैठे हैं। आज दुनिया के सामने 5 सबसे बड़े संकट है- वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन, जंगलों की कटाई, लुप्त होती प्रजातियां (fading species), मिट्टी का क्षरण (soil erosion) और high पापुलेशन. बावजूद इसके शायद हमारे/आपके सांसद महोदय ने कभी पार्लियामेंट में पर्यावरण से जुड़ा कोई सवाल नहीं किया होगा, हमने भी कभी अपने सांसद से पर्यावरण से जुड़ा कोई सवाल नही किया, हमारे बच्चों ने भी हमसे कभी पर्यावरण से जुड़ा सवाल नहीं किया और अफसोस की बात ये है की पर्यावरण शब्द आज हमारे जीवन में मौसम के बनने-बिगड़ने, ज्यादा या कम होने, आने या जाने तक की बातों तक ही सीमित हो कर रह गया है।
अपने बच्चों को संविधान का Article 51A (G) याद करवाइए, सरकारों से Environmental science के विषय को मजबूत करने की माँग करिए और पर्यवरण को चुनावी मुद्दा बनवाइए क्यूंकि हकीकत यही है कि इन्वायरमेंट और बाकी अर्थ डे की उपयोगिता तभी है जब हम ये जान लें – कि ‘ये पृथ्वी हमें, हमारे पुरखों से विरासत में नही मिली है बल्कि हमारी आने वाली नस्लों ने इसे, हमें उधार के तौर पर दे रखा है।
–रूद्र
( लेखक रूद्र प्रताप दूबे , नामचीन पत्रकार हैं, सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ है, ये उनके विचार हैं )