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सूफ़ी संत शाह अब्दुर्रसूल का दो दिवसीय उर्स हल्लौर में शुरू, बड़ी संख्या में पहुँचे अकीदतमंद

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प्रभाव इण्डिया

सूफ़ी संत शाह अब्दुर्रसूल रह. का दो दिवसीय उर्स हल्लौर में शुरू हो गया है ।
यह उर्स हर साल मनाया जाता है । बताया जाता है कि सूफी खयाल के शाह अब्दुर्रसूल रह.का आगमन पश्चिम एशिया के तत्कालीन देश फारस और वर्तमान ईरान से हुआ है । यह आगमन संभवतः 16 वीं शताब्दी में हुआ था । यह सूफी परंपरओं के ज़रिए इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार करते करते हल्लौर में अपना ठिकाना बनाया । क्योंकि यहाँ पर तब अंधविश्वास और व्यभिचार का बोलबाला था । कुछ थारू राजा यहाँ पर शक्तिशाली भूमिका में थे, जिनको हज़रत शाह अब्दुरसूल ने इसलामिक शिक्षाओं और किरदार से थारुओं को सही रास्ते पर लाये । कुछ ने इस्लाम कबूल किया कुछ यह स्थान छोड़ कर चले गए । यहां पर कई मोज़िज़े की बात कही जा रही है जिसमे मज़ार कैम्पस में मौजूद रीठे का पेड़ लोगों की आस्था का केंद्र आज भी बना हुआ है । कुओं से पानी गायब होना भी एक चमत्कार बताया जाता है । जिसकी लम्बी कहानी है ।
इस उर्स की जो सबसे खास बात है वह यह है कि #शाह अब्दुरसूल रह. की अहमियत को देखते हुए तत्कालीन शासक शाह आलमगीर सानी जिन्हें #मुअज़्ज़म_शाह कहते हैं वह अपने क्षेत्र भ्रमण पर हल्लौर आये तो इस महान सख्शियत की अहमियत को देखते हुए हल्लौर सहित 7 गाँवो को माफ़ी घोषित करते हुए लगान मुक्त कर दिया और बहुत बड़ी संपत्ति को वक़्फ घोषित किया । तत्कालीन मुतवल्ली से कहा कि इस सूफ़ी सन्त की अहमियत और इस्लाम की शिक्षाओं को क्षेत्र में फैलाया जाए । और उस शासक के हुक्म से हल्लौर में सूफी संत शाह अब्दुर्रसूल और उनके भाई शाह मुस्लिम की मजार और बगल में ही शाह आलमगीर सानी के नाम से इमाम बारगाह और मुसाफिरखाना का निर्माण भी सरकारी खजाने से करवाया गया । और यह व्यवस्था की गई कि हर साल इमाम बारगाह के चौक पर मुहर्रम में ताज़िया और हज़रत शाह अब्दुर्रसूल का उर्स सरकारी खर्च पर होगा । यह सिलसिला आज भी जारी है ।
लगातार 5वीं पीढ़ी तक निरन्तर हज़रत शाह अब्दुर्रसूल की मज़ार के मुख्य ख़ादिम ग़ुलाम अली शाह ने बताया कि शाह अब्दुर्रसूल रह. के कई अनुयायियों में एक हिंदू अनुयायी #महादेव थे, जिन्हें बाबा ने #मौजूदा_शाह की संज्ञा दी थी उनकी भी मज़ार यहीं पर है और 1875 में तत्कालीन अंग्रेज़ अधिकारी सोलोमन हल्लौर आया था, जिसने यहाँ की मज़ार , मुसाफिर खाना, ईमाम बारगाह का लिखित वर्णन किया है ।
यह उर्स भाई चारे और अमन का पैग़ाम देता है । वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से नियुक्त वर्तमान मोतवल्ली सलमान मेंहदी हैं । जिनके अनुसार उर्स के मेले में जायरीन के लिए सभी सुविधाएं मुहैया करा दी गई हैं ।

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